BSC 3RD YEAR
Zoology lesson 1 chordata
वर्गीकरण की रूपरेखा देखने पर ज्ञात होता है कि जन्तु-जगत को अनेक वृहत समूहों में वर्गीकृत किया गया है जो संघ (Phylum) के नाम से जाने जाते हैं। वर्तमान जानकारी के अनुसार लगभग 30 संघ ज्ञात किए गए हैं। जन्तु जगत का अन्तिम संघ कॉर्बेटा के रूप में जाना जाता है। इसे सर्वप्रथम बालफोर (Balfour) ने 1880 में ज्ञात किया था। इस संघ के नाम की उत्पत्ति दो यूनानी शब्दों से हुई है। ये शब्द 'कार्ड' (Chorde) तथा एटा (ate) है। 'कार्ड' का अर्थ मोटी रस्सी (String) नामक रचना से होता है तथा 'एटा' का अर्थ है, रखना। इस प्रकार इन जन्तुओं में एक रस्सी नुमा मोटी रखना पायी जाती है, जो नोटोकार्ड (Notcohord) कहलाती है। यह रचना इन जन्तुओं को अवलम्बन या सहारा प्रदान करती है। नोटोकॉर्ड रचना इस संघ के जन्तुओं में या उनके जीवन काल की किसी भी अवस्था में देखी जा सकती है. अत कॉर्डेटा वे जन्तु है जिनमें नोटोकॉर्ड पायी जाती है। अन्य संघों के जन्तुओं में नोटोकार्ड नामक रचना उपस्थित होती है तथा ये नॉन कॉर्डेटा (Non-Chordata) या अकशेरूकी (Invertebrates) कहलाते हैं।
वर्गीकीविज्ञों (Taxonomists) के अनुसार लगभग 20 लाख जातियों के प्राणी इस भूमण्डल में पाये गये हैं। इनमें से 95- 97% प्राणी अकशेरुकी या अरज्जुकी (Non-chordates) एवं शेष 3-5% रज्जुकी या कॉर्डट्स है। सघ कॉर्डेटा डयूटेरोस्टोम (Duterostome) सघों में यह सबसे विशाल सघ है। यह सर्वाधिक विकसित एवं महत्वपूर्ण संघ है। कॉडेंट्स में सर्वाध्कि जीवित जन्तुओं की जातियाँ मत्स्य (Pisces) समूह एवं सबसे कम संख्या सरीसृप (Reptiles) समूह में हैं। कॉर्बेटा संघ में विविध प्रकार के प्राणी पाये जाते है। इनमें सबसे बड़े या लम्बे प्राणी ब्लू व्हेल अर्थात् ब्लेल में बेलेनोप्टेरा मसकुलस (Balaenoptera. musculus) है जो 35 मीटर लम्बे व 120 टन भार के होते है, तथा सूक्ष्मतम जन्तु मछली पम्डाका (Pandaka) है जो कि केवल 10 मि.मी लम्बी होती है ये गये हैं।
प्राथमिक कॉर्डेट लक्षण (Primary chordate characters)
समस्त कॉर्डेट जन्तुओं के जीवन काल की किसी न किसी अवस्था में कुछ लक्षण आवश्यक रूप से अवश्य देखे जा सकते हैं। इन लक्षणों को प्राथमिक या मूलभूत कॉर्बेट लक्षण कहा जाता है। ये निम्नलिखित है -
1. नोटोकॉर्ड की उपस्थिति (Presence of notochord):
नोटोकॉर्ड या पृष्ठरज्जु एक कठोर शलाखा (Rod) के रूप में पाये जाने वाली रचना है जो शरीर के पृष्ठ भाग में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली होती है। नोटोकॉर्ड की स्थिति जन्तु में केन्द्रीय तन्त्रिका तत्र (Central nervous system) के नीचे तथा आहार नाल (Alimentary canal) के ऊपर होती है। यह भ्रूण में परिवर्तन की आरम्भिक अवस्था में मध्य पृष्ठतल (Dorsal surface) में आहार नाल की एण्डोडर्म (Endoderm) से विकसित होती है। यह एक प्राथमिक अतः कंकाल (Endoskeleton) बनाती है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तथा पेशियों को सहारा प्रदान करती है। सरचनात्मक रूप से नोटोकॉर्ड अनेक घानीयुक्त (Vacuolated) नोटोकॉर्ड कोशिकाओं (Notochordal celis) से बनी होती है जिनके ऊपर आन्तरिक लचीली (Inner elastic) तथा बाहरी तन्तुमय संयोजी ऊत्तक (Fibrous connective tissue) का आवरण होता है। नोटोकॉर्ड सामान्तया प्रोटोकोंडेंट (Protochordate) जन्तुओं में पाई जाती है तथा अधिकांश वयस्क कणेरूकियों (Vertebrates) में नोटोकॉर्ड के स्थान पर कॉर्टिलेज (Cartilage) या हड्डियों (Bones) का बना कशेरूक दण्ड (Vertebral column) पाया जाता है।
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चित्र 1.1 : स्कालिओडान की पृष्ठ रज्जु |
2. पृष्ठ नलिकार नर्वकार्ड की उपस्थिति (Presence of dorsal tubular nerve cord):
कॉर्डट जन्तुओं में तन्त्रिका तन्त्र देह की पृष्ठ सतह पर उपस्थित होता है। इन जन्तुओं की रचना में एक लम्बवत् खोखली एवं नली के आकार की संरचना तन्त्रिका तन्त्र के पीछे की ओर स्थित होती है जो देहभित्ति के ठीक नीचे तथा नोटोकॉर्ड के ऊपर पायी जाती है। नर्व कार्ड या तन्त्रिका नली (Nerual tube) भ्रूणीय अवस्था में एन्डोडर्म के मध्य पृष्ठ तल पर अन्र्तवलन (Invagination)
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चरित्र 1.2 : प्रारूपी कॉर्डेट में प्रष्ठ नलाकार केंद्रीय तंत्रिका नाल का परिवर्धन |
द्वारा बनती है। आरम्भ में यह भ्रूण की पृष्ठ सतह पर एक संकरी पट्टी के रूप में होती है जो न्यूरल प्लेट (Neural plate) कहलाती है। यह प्लेट नीचे की ओर पैसती जाती है तथा इसके दोनों किनारे मयूरल फोल्ड (Neural fold) के रूप में ऊपर उठ जाते हैं जो एक दूसरे की ओर बढ़कर अंत में परस्पर मिलकर न्यूरल गुहा (Neural canal) का निर्माण करती है। अधि कांश कोंडेंट जन्तुओं में नर्वकॉर्ड का स्पाइनल कॉर्ड (Spinal cord) बनाता है। मस्तिष्क कशेरुकी जन्तुओं में क्रेनियम (Cranium) के भीतर रहता है तथा स्पाइनल कॉर्ड वर्टिब्रल कैनाल (Vertebral canal) अर्षात करोरूक नाल के भीतर उपस्थित होती है।
3. प्रसनीय क्लोम दरारों की उपस्थिति (Presence of pharyngeal gill slits):
सभी कॉर्डेटा जन्तुओं में जीवन की किसी न किसी प्रावस्था में ग्रसनीय क्लोम छिद (Gill slits) अवश्य ही पाये जाते हैं। ये मुख की पीछे आहार नाल की ग्रसनीय दीवार में उपस्थित युगल छिद्रों के रूप में पाये जाते हैं। इन रचनाओं का निर्माण भ्रूणीय अवस्था में एक्टोडर्म के अन्दर की ओर घूँसने तथा प्रसनीय एन्डोडर्म के बाहर की ओर उभरने तथा दोनों के समेकन (Fusion) से होता है।
प्रोटोकॉर्डेट्स (Protochordates) तथा निम्न जलीय कॉर्डेट्स (Lower aquatic chordates) में गिल-स्लिट्स जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहते हैं परन्तु उच्च कॉडेंट्स वयस्क जन्तुओं में ये रचनाएँ या तो अदृश्य हो जाती है या फिर अन्य श्वसनी रचनाओं में परिवर्तित हो जाती है।उपरोक्त वर्णित तीन प्राथमिक लक्षण समस्त कॉर्डेटा जन्तुओं की प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था में तो अवश्य देखे जाते हैं परन्तु ये सभी लक्षण वयस्क अवस्था में या तो पूर्ण रूप से अदृश्य हो जाते है या फिर अन्य किसी रचना में रूपान्तरित हो जाते हैं।
[4. कॉर्डेटा के सामान्य लक्षण (General characters of chordates) :-
1. ये जलीय (Aquatic), स्थलीय (Terrestrial) अथवा वायव (Aerial) जन्तु होते हैं। सभी स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करते हैं।
2 इनका शरीर विभिन्न आकार का होता है तथा ये द्विपाश्र्व सममित (Bilaterally symmetrical) तथा विखण्डीकृत
3. (Metamerically segmented) होते हैं। त्वचा (Skin) में अधिचर्म (Epodermis) स्तरित उपकला (Stratified epidermis) से बनी होती है। नॉन कॉर्जेट्स "में यह एकल स्तर से बनी रहती है। उपकलों के नीचे डर्मिस (Dermis) स्तर उपस्थित रहता है जो मीजोडर्मल संयोजी ऊत्तक से बना होता है।
4. इनकी देह त्रिस्तरीय (Triplobastic) होती है जिसमें एक्टोडर्म (Ectoderm), मीजोडर्म (Mesoderm) एवं एण्डोडर्म (Endoderm) के रूप में तीन जनन स्तर (Germinal layers) उपस्थित होते हैं। 5. बाह्य कंकाल (Exoskeleton) सामान्तया उपस्थित होता है जो अधिकांश कशेरुकियों में बहुत अधिक विकसित होता है ।